Top 3 Moral Stories in Hindi for Class 9

Top 3 Moral Stories in Hindi for Class 9

Moral Story in Hindi for class 9: Hello friends, how are you? Today I am sharing the best 3 moral stories in Hindi for class 9. These Moral Hindi stories are very valuable and give very good moral.  आज के इस आर्टिकल मे मै आप के साथ top 3 moral story in hindi for class 9 share कर रहा हूँ। ये हिंदी नैतिक कहानियाँ बच्चों के लिए बहुत ही उपयोगी होगी। ये सभी कहानियों के अंत मे नैतिक शिक्षा दी गयी हैं। जो बच्चों को लोगों और दुनिया को समझने मे बहुत मदद करेगी। आईये इन top 3 moral stories in Hindi for class 9 पढ़ते हैं।  एक बार एक व्यक्ति ने घोर तपस्या करके भगवान को प्रसन्न कर लिया। भगवान ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वर दिया कि जीवन में एक बार सच्चे मन से जो चाहोगे वही हो जाएगा। उस व्यक्ति के जीवन में अनेक अवसर आए, जब वह इस वरदान का इस्तेमाल कर अपने जीवन को सुखी बना सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। कई बार भूखों मरने की नौबत आई, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। अनेक ऐसे अवसर भी आए, जब वह इस वरदान का प्रयोग कर देश की काया पलट कर सकता था, अथवा समाज को खुशहाल बना सकता था, लेकिन उसने ऐसा भी नहीं किया। वह उस अवसर की तलाश में था जब मौत आएगी और वह अपने वरदान का इस्तेमाल कर अमर हो जाएगा और दुनिया को दिखा देगा कि अपने वरदान का उसने कितनी बुद्धिमत्ता से इस्तेमाल किया है। लेकिन मौत तो किसी को सोचने का अवसर देती नहीं। उसने चुपके से एक दिन उसे आ दबोचा। उस का वरदान धरा का धरा रह गया। मौत से पहले जी लेने का अर्थ है अपनी सामर्थ्य अथवा इन नेमतों का सदुपयोग कर लेना। और यह बेहद जरूरी है और अभी करना जरूरी है। बाद में तो कोई अवसर मिलने से रहा। ये दौलत, ये बाहुबल, ये सत्ता की ताकत कुछ भी साथ नहीं जाने वाला। जिन के लिए ये सब कर रहे हो उन के भी काम नहीं आने वाला है। उन दिनों महादेव गोविंद रानडे हाई कोर्ट के जज थे। उन्हें भाषाएँ सीखने का बड़ा शौक था। अपने इस शौक के कारण उन्होंने अनेक भाषाएँ सीख ली थीं; किंतु बँगला भाषा अभी तक नहीं सीख पाए थे। अंत में उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने एक बंगाली नाई से हजामत बनवानी शुरू कर दी। नाई जितनी देर तक उनकी हजामत बनाता, वे उससे बँगला भाषा सीखते रहते। रानडे की पत्नी को यह बुरा लगा। उन्होंने अपने पति से कहा, ‘‘आप हाई कोर्ट के जज होकर एक नाई से भाषा सीखते हैं। कोई देखेगा तो क्या इज्जत रह जाएगी ! आपको बँगला सीखनी ही है तो किसी विद्वान से सीखिए।’’ रानडे ने हँसते हुए उत्तर दिया, ‘‘मैं तो ज्ञान का प्यासा हूँ। मुझे जाति-पाँत से क्या लेना-देना ?’’ यह उत्तर सुन पत्नी फिर कुछ न बोलीं। ज्ञान ऊँच-नीच की किसी पिटारी में बंद नहीं रहता। एक धनी पुरुष ने एक मन्दिर बनवाया। मन्दिर में भगवान् की पूजा करने के लिए एक पुजारी रखा। मन्दिर के खर्च के लिये बहुत- सी भूमि, खेत और बगीचे मन्दिर के नाम कर दिए। उन्होंने ऐसा प्रबंध किया था कि जो भूखे, दीन -दुःखी या साधु संत आएँ, वे वहाँ दो- चार दिन ठहर सकें और उनको भोजन के लिए भगवान् का प्रसाद मन्दिर से मिल जाया करे। अब उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो मन्दिर की सम्पत्ति का प्रबंध करे और मन्दिर के सब कामों को ठीक- ठीक चलाता रहे। बहुत से लोग उस धनी पुरुष के पास आये। वे लोग जानते थे कि यदि मन्दिर की व्यवस्था का काम मिल जाय तो वेतन अच्छा मिलेगा। लेकिन उस धनी पुरुष ने सबको लौटा दिया। वह सबसे कहता, मुझे एक भला आदमी चाहिये, मैं उसको अपने- आप छाँट लूँगा।’ बहुत से लोग मन ही मन उस धनी पुरुष को गालियाँ देते थे। बहुत लोग उसे मूर्ख या पागल कहते। लेकिन वह धनी पुरुष किसी की बात पर ध्यान नहीं देता था। जब मन्दिर के पट खुलते थे और लोग भगवान् के दर्शनों के लिये आने लगते थे, तब वह धनी पुरुष अपने मकान की छत पर बैठकर मन्दिर में आने वाले लोगों को चुपचाप देखा करता था। एक दिन एक व्यक्ति मन्दिर में दर्शन करने आया। उसके कपड़े मैले फटे हुए थे। वह बहुत पढ़ा- लिखा भी नहीं जान पड़ता था। जब वह भगवान् का दर्शन करके जाने लगा, तब धनी पुरुष ने उसे अपने पास बुलाया और कहा- ‘क्या आप इस मन्दिर की व्यवस्था सँभालने का काम स्वीकारकरेंगे?’ वह व्यक्ति बड़े आश्चर्य में पड़ गया। उसने कहा- ‘मैं तो बहुत पढ़ा- लिखा नहीं हूँ। मैं इतने बड़े मन्दिर का प्रबन्ध कैसे कर सकूँगा?’ धनी पुरुष ने कहा- ‘मुझे बहुत विद्वान् नहीं चाहिए। मैं तो एक भले आदमी को मन्दिर का प्रबंधक बनाना चाहता हूँ।’ मैं जानता हूँ कि आप भले आदमी हैं। मन्दिर के रास्ते में एक ईंट का टुकड़ा गड़ा रह गया था और उसका एक कोना ऊपर निकला था। मैं इधर बहुत दिनों से देखता था कि ईंट के टुकड़े की नोक से लोगों को ठोकर लगती थी। लोग गिरते थे, लुढ़कते थे और उठकर चल देते थे। आपको उस टुकड़े से ठोकर नहीं लगी; किन्तु आपने उसे देखकर ही उखाड़ देने का यत्नं किया। मैं देख रहा था कि आप मेरे मजदूर से फावड़ा माँगकर ले गये और उस टुकड़े को खोदकर आपने वहाँ की भूमि भी बराबर कर दी। उस व्यक्ति ने कहा- ‘यह तो कोई बड़ी बात नहीं है। रास्ते में पड़े काँटे, कंकड़ और ठोकर लगने वाले पत्थर, ईटों को हटा देना तो प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है।’धनी पुरुष ने कहा- ‘अपने कर्त्तव्य को जानने और पालन करने वाले लोग ही भले आदमी होते हैं।’ मैं आपको ही मंदिर का प्रबंधक बनाना चाहता हूँ।’ वह व्यक्ति मन्दिर का प्रबन्धक बन गया और उसने मन्दिर का बड़ा सुन्दर प्रबन्ध किया। दोस्तों यह थी top 3 Moral Story in hindi for class 9. ये सभी कहानियाँ नैतिक है। और इन कहानियों से बच्चों को बहुत मदद मिलेगी।  आप को ये best 3 hindi moral stories for class 9 कैसी लगी हमे comment मे जरूर बताएं। अगर आप को ये कहानियाँ अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर share करें। 

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