3 Best Moral Stories in Hindi for Class 3

3 Best Moral Stories in Hindi for Class 3

Moral Stories in Hindi for class 3: Hello friends, how are you? Today I am sharing the top 3 moral stories in Hindi for class 3. These short stories in Hindi are very valuable for class 2 and give very good moral.

आज के इस आर्टिकल मे, मै आप के साथ top 3 short stories in hindi for class 3 with moral share कर रहा हूँ। ये हिंदी नैतिक कहानियाँ बच्चों के लिए बहुत ही उपयोगी होगी। ये सभी कहानियों के अंत मे नैतिक शिक्षा दी गयी हैं। जो बच्चों को लोगों और दुनिया को समझने मे बहुत मदद करेगी।

आईये इन top 3 moral stories in Hindi for class 3 पढ़ते हैं।


एक गुफा में एक बड़ा ताकतवर शेर रहता था। वह प्रतिदिन जंगल के अनेक जानवरों को मार डालता था। उस वन के सारे जानवर उसके डर से काँपते रहते थे। एक बार जानवरों ने सभा की। उन्होंने निश्चय किया कि शेर के पास जाकर उससे निवेदन किया जाए। जानवरों के कुछ चुने हुए प्रतिनिधि शेर के पास गए। जानवरों ने उसे प्रणाम किया। फिर एक प्रतिनिधि ने हाथ जोड़कर निवेदन किया, ‘आप इस जंगल के राजा है। आप अपने भोजन के लिए प्रतिदिन अनेक जानवरों को मार देते हैं, जबकि आपका पेट एक जानवर से ही भर जाता है।’ शेर ने गरजकर पूछा-‘तो मैं क्या कर सकता हूँ?’ सभी जानवरों में निवेदन किया, ‘महाराज, आप भोजन के लिए कष्ट न करें। आपके भोजन के लिए हम स्वयं हर दिन एक जानवर को आपकी सेवा में भेज दिया करेंगे। आपका भोजन हरदिन समय पर आपकी सेवा से पहुँच जाया करेगा।’ शेर ने कुछ देर सोचा और कहा-‘यदि तुम लोग ऐसा ही चाहते हो तो ठीक है। किंतु ध्यान रखना कि इस नियम में किसी प्रकार की ढील नहीं आनी चाहिए।’ इसके बाद हर दिन एक पशु शेर की सेवा में भेज दिया जाता। एक दिन शेर के पास जाने की बारी एक खरगोश की आ गई। खरगोश बुद्धिमान था। उसने मन-ही मन सोचा- ‘अब जीवन तो शेष है नहीं। फिर मैं शेर को खुश करने का उपाय क्यों करुँ? ऐसा सोचकर वह एक कुएँ पर आराम करने लगा। इसी कारण शेर के पास पहुँचने में उसे बहुत देर हो गई।’ खरगोश जब शेर के पास पहुँचा तो वह भूख के कारण परेशान था। खरगोश को देखते ही शेर जोर से गरजा और कहा, ‘एक तो तू इतना छोटा-सा खरगोश है और फिर इतनी देर से आया है। बता, तुझे इतनी देर कैसे हुई?’ खरगोश बनावटी डर से काँपते हुए बोला- ‘महाराज, मेरा कोई दोष नहीं है। हम दो खरगोश आपकी सेवा के लिए आए थे। किंतु रास्ते में एक शेर ने हमें रोक लिया। उसने मुझे पकड़ लिया।’ मैंने उससे कहा- ‘यदि तुमने मुझे मार दिया तो हमारे राजा तुम पर नाराज होंगे और तुम्हारे प्राण ले लेंगे।’ उसने पूछा-‘कौन है तुम्हारा राजा?’ इस पर मैंने आपका नाम बता दिया। यह सुनकर वह शेर क्रोध से भर गया। वह बोला, ‘तुम झूठ बोलते हो।’ इस पर खरगोश ने कहा, ‘नहीं, मैं सच कहता हूँ तुम मेरे साथी को बंधक रख लो। मैं अपने राजा को तुम्हारे पास लेकर आता हूँ।’ खरगोश की बात सुनकर दुर्दांत शेर का क्रोध बढ़ गया। उसने गरजकर कहा, ‘चलो, मुझे दिखाओ कि वह दुष्ट कहाँ रहता है?’ खरगोश शेर को लेकर एक कुँए के पास पहुँचा। खरगोश ने चारों ओर देखा और कहा, महाराज, ऐसा लगता है कि आपको देखकर वह शेर अपने किले में घुस गया।’ शेर ने पूछा, ‘कहां है उसका किला?’ खरगोश ने कुएँ को दिखाकर कहा, ‘महाराज, यह है उस शेर का किला।’ खरगोश स्वयं कुएँ की मुँडेर पर खड़ा हो गया। शेर भी मुँडेर पर चढ़ गया। दोनों की परछाई कुएँ के पानी में दिखाई देने लगी। खरगोश ने शेर से कहा, ‘महाराज, देखिए। वह रहा मेरा साथी खरगोश। उसके पास आपका शत्रु खड़ा है।’ शेर ने दोनों को देखा। उसने भीषण गर्जन किया। उसकी गूँज कुएँ से बाहर आई। बस, फिर क्या था! देखते ही देखते शेर ने अपने शत्रु को पकड़ने के लिए कुएँ में छलाँग लगा दी और वहीं डूबकर मर गया। किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी खेती साधारण ही थी, अतः अधिकांश समय वह खाली ही रहता था। एक बार ग्रीष्म ऋतु में वह इसी प्रकार अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था। सोए-सोए उसने अपने समीप ही सर्प का बिल देखा, उस पर सर्प फन फैलाए बैठा था। उसको देखकर वह ब्राह्मण विचार करने लगा कि हो-न-हो, यही मेरे क्षेत्र का देवता है। मैंने कभी इसकी पूजा नहीं की। अतः मैं आज अवश्य इसकी पूजा करूंगा। यह विचार मन में आते ही वह उठा और कहीं से जाकर दूध मांग लाया। उसे उसने एक मिट्टी के बरतन में रखा और बिल के समीप जाकर बोला, “हे क्षेत्रपाल! आज तक मुझे आपके विषय में मालूम नहीं था, इसलिए मैं किसी प्रकार की पूजा-अर्चना नहीं कर पाया। आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए।” इस प्रकार प्रार्थना करके उसने उस दूध को वहीं पर रख दिया और फिर अपने घर को लौट गया। दूसरे दिन प्रातःकाल जब वह अपने खेत पर आया तो सर्वप्रथम उसी स्थान पर गया। वहां उसने देखा कि जिस बरतन में उसने दूध रखा था उसमें एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई है। उसने उस मुद्रा को उठाकर रख लिया। उस दिन भी उसने उसी प्रकार सर्प की पूजा की और उसके लिए दूध रखकर चला गया। अगले दिन प्रातःकाल उसको फिर एक स्वर्णमुद्रा मिली। इस प्रकार अब नित्य वह पूजा करता और अगले दिन उसको एक स्वर्णमुद्रा मिल जाया करती थी। कुछ दिनों बाद उसको किसी कार्य से अन्य ग्राम में जाना पड़ा। उसने अपने पुत्र को उस स्थान पर दूध रखने का निर्देश दिया। तदानुसार उस दिन उसका पुत्र गया और वहां दूध रख आया। दूसरे दिन जब वह पुनः दूध रखने के लिए गया तो देखा कि वहां स्वर्णमुद्रा रखी हुई है। उसने उस मुद्रा को उठा लिया और वह मन ही मन सोचने लगा कि निश्चित ही इस बिल के अंदर स्वर्णमुद्राओं का भण्डार है। मन में यह विचार आते ही उसने निश्चय किया कि बिल को खोदकर सारी मुद्राएं ले ली जाएं। सर्प का भय था। किन्तु जब दूध पीने के लिए सर्प बाहर निकला तो उसने उसके सिर पर लाठी का प्रहार किया। इससे सर्प तो मरा नहीं और इस प्रकार से क्रुद्ध होकर उसने ब्राह्मण-पुत्र को अपने विषभरे दांतों से काटा कि उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। उसके सम्बधियों ने उस लड़के को वहीं उसी खेत पर जला दिया। कहा भी जाता है लालच का फल कभी मीठा नहीं होता है। किसी ग्राम में किसान दम्पती रहा करते थे। किसान तो वृद्ध था पर उसकी पत्नी युवती थी। अपने पति से संतुष्ट न रहने के कारण किसान की पत्नी सदा पर-पुरुष की टोह में रहती थी, इस कारण एक क्षण भी घर में नहीं ठहरती थी। एक दिन किसी ठग ने उसको घर से निकलते हुए देख लिया। उसने उसका पीछा किया और जब देखा कि वह एकान्त में पहुँच गई तो उसके सम्मुख जाकर उसने कहा, “देखो, मेरी पत्नी का देहान्त हो चुका है। मैं तुम पर अनुरक्त हूं। मेरे साथ चलो।” वह बोली, “यदि ऐसी ही बात है तो मेरे पति के पास बहुत-सा धन है, वृद्धावस्था के कारण वह हिलडुल नहीं सकता। मैं उसको लेकर आती हूं, जिससे कि हमारा भविष्य सुखमय बीते।” “ठीक है जाओ। कल प्रातःकाल इसी समय इसी स्थान पर मिल जाना।” इस प्रकार उस दिन वह किसान की स्त्री अपने घर लौट गई। रात होने पर जब उसका पति सो गया, तो उसने अपने पति का धन समेटा और उसे लेकर प्रातःकाल उस स्थान पर जा पहुंची। दोनों वहां से चल दिए। दोनों अपने ग्राम से बहुत दूर निकल आए थे कि तभी मार्ग में एक गहरी नदी आ गई। उस समय उस ठग के मन में विचार आया कि इस औरत को अपने साथ ले जाकर मैं क्या करूंगा। और फिर इसको खोजता हुआ कोई इसके पीछे आ गया तो वैसे भी संकट ही है। अतः किसी प्रकार इससे सारा धन हथियाकर अपना पिण्ड छुड़ाना चाहिए। यह विचार कर उसने कहा, “नदी बड़ी गहरी है। पहले मैं गठरी को उस पार रख आता हूं, फिर तुमको अपनी पीठ पर लादकर उस पार ले चलूंगा। दोनों को एक साथ ले चलना कठिन है।” “ठीक है, ऐसा ही करो।” किसान की स्त्री ने अपनी गठरी उसे पकड़ाई तो ठग बोला, “अपने पहने हुए गहने-कपड़े भी दे दो, जिससे नदी में चलने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी। और कपड़े भीगेंगे भी नहीं।” उसने वैसा ही किया। उन्हें लेकर ठग नदी के उस पार गया तो फिर लौटकर आया ही नहीं। वह औरत अपने कुकृत्यों के कारण कहीं की नहीं रही। इसलिए कहते हैं कि अपने हित के लिए गलत कर्मों का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए। दोस्तों यह थी top 3 Moral Stories in Hindi for class 3. ये सभी कहानियाँ नैतिक है। और इन कहानियों से बच्चों को बहुत मदद मिलेगी। आप को ये top 3 Hindi moral story for class 3 कैसी लगी हमे comment मे जरूर बताएं। अगर आप को ये कहानियाँ अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर share करें। 

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